‘आरोपी को जेल में सड़ने नहीं दे सकते’, UAPA मामले की सुनवाई करते हुए क्यों भड़का सुप्रीम कोर्ट?

सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि किसी भी आरोपी को निष्पक्ष और त्वरित सुनवाई के बिना जेल में सड़ने नहीं दिया जा सकता. कोर्ट बुधवार (20 अगस्त, 2025) को यूएपीए से जुड़े एक मामले में सुनवाई कर रहा था, जिस दौरान कोर्ट ने यह बात कही.
जस्टिस विक्रम नाथ और जस्टिस के वी विश्वनाथन की बेंच ने हाईकोर्ट को निर्देश दिया कि वह सुनवाई में तेजी लाए और दो साल के अंदर सुनवाई पूरी होनी चाहिए क्योंकि इस मुकदमे में 100 से ज्यादा गवाह हैं, जिनसे अभियोजन पक्ष को जिरह करनी है.
सुप्रीम कोर्ट उन दो याचिकाओं पर सुनवाई कर रहा था, जिनमें कर्नाटक हाईकोर्ट के फैसले को चुनौती दी गई है. अप्रैल 2022 में कर्नाटक हाईकोर्ट ने एक आरोपी को जमानत दे दी थी, लेकिन एक अन्य सह-आरोपी को राहत देने से इनकार कर दिया था. इस फैसले के खिलाफ केंद्र ने याचिका दाखिल करके जमानत दिए जाने का विरोध किया, जबकि दूसरी याचिका सह-अभियुक्त ने दाखिल की थी, जिसे कोर्ट ने राहत देने से इनकार कर दिया था.
जनवरी 2020 में बेंगलुरु में 17 लोगों के खिलाफ प्राथमिकी दर्ज की गई थी, जिसमें गैरकानूनी गतिविधियां (रोकथाम) अधिनियम, 1967 (यूएपीए) के प्रावधान भी शामिल थे. बाद में यह मामला राष्ट्रीय अन्वेषण अभिकरण (NIA) को सौंप दिया गया और जुलाई 2020 में आरोपपत्र दायर किया गया.
बेंच ने कहा कि तथ्य यह है कि साढ़े पांच साल बीत जाने के बावजूद मुकदमा शुरू नहीं हुआ है. निष्पक्ष और त्वरित सुनवाई के बिना आरोपियों को जेल में सड़ने नहीं दिया जा सकता. कोर्ट ने कहा कि दोनों आरोपियों को जमानत देने और अस्वीकार करने के लिए दिए गए कारण पूरी तरह से न्यायोचित और सही थे.
बेंच ने आरोपी को जमानत देने के हाईकोर्ट के आदेश में हस्तक्षेप करने से इनकार कर दिया. वहीं, सह-आरोपी की जमानत याचिका पर सुनवाई करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि हाईकोर्ट ने पाया कि वह प्रतिबंधित आतंकवादी संगठनों के साथ संलिप्त है.
कोर्ट ने कहा कि हाईकोर्ट की ओर से दिए गए कारण जांच के दौरान एकत्र की गई सामग्री और आरोपपत्र में दर्शाए गए तथ्यों पर आधारित हैं. अपीलों को खारिज करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने अभियोजन पक्ष को साक्ष्य प्रस्तुत करने और निर्धारित समय के भीतर सुनवाई पूरी करने में पूर्ण सहयोग सुनिश्चित करने का निर्देश दिया और आरोपियों से भी सहयोग करने को कहा.
सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि अगर यह पाया जाता है कि आरोपी मुकदमे में देरी करने की कोशिश कर रहा है तो निचली अदालत या अभियोजन एजेंसी को आरोपी की जमानत रद्द करने के लिए आवेदन करने की स्वतंत्रता है.