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Presidential Reference Bills Timeline Case; Supreme Court | CJI BR Gavai | SC बोला- सरकार…

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नई दिल्ली5 मिनट पहले

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सुप्रीम कोर्ट ने बुधवार को कहा कि निर्वाचित सरकारें राज्यपालों की मर्जी पर नहीं चल सकती। अगर कोई बिल राज्य की विधानसभा से पास होकर दूसरी बार राज्यपाल के पास आता है, तो राज्यपाल उसे राष्ट्रपति के पास नहीं भेज सकते।

संविधान के अनुच्छेद 200 के तहत राज्यपाल के पास चार विकल्प होते हैं- बिल को मंजूरी देना, मंजूरी रोकना, राष्ट्रपति के पास भेजना या विधानसभा को पुनर्विचार के लिए लौटाना। लेकिन अगर विधानसभा दोबारा वही बिल पास करके भेजती है, तो राज्यपाल को उसे मंजूरी देनी होगी।

CJI बीआर गवई की अध्यक्षता वाली पांच जजों की बेंच ने कहा कि अगर राज्यपाल बिना पुनर्विचार के ही मंजूरी रोकते हैं, तो इससे चुनी हुई सरकारें राज्यपाल की मर्जी पर निर्भर हो जाएंगी। कोर्ट ने कहा कि राज्यपाल को यह अधिकार नहीं है कि वे अनिश्चितकाल तक मंजूरी रोककर रखें।

बेंच में CJI के अलावा जस्टिस सूर्यकांत, विक्रम नाथ, पी एस नरसिम्हा और ए एस चंदुरकर शामिल हैं। कोर्ट ने कहा कि अगर राज्यपाल बिल को पुनर्विचार के लिए विधानसभा को भेजते हैं, तो फिर मंजूरी रोकने या राष्ट्रपति के पास भेजने का विकल्प खत्म हो जाता है।

केंद्र ने कहा- राज्यपाल को पोस्टमैन नहीं बनाया जा सकता सुनवाई के दौरान केंद्र सरकार की ओर से सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने कहा कि राज्यपाल को केवल पोस्टमैन की भूमिका में नहीं रखा जा सकता। उनके पास कुछ संवैधानिक अधिकार हैं और वे राष्ट्रपति द्वारा नियुक्त होते हैं।

उन्होंने दलील दी कि राज्यपाल दोबारा आए बिल को भी राष्ट्रपति के पास भेज सकते हैं। मंजूरी रोकने का अधिकार केवल असाधारण परिस्थितियों में और सीमित रूप से इस्तेमाल होना चाहिए।

वरिष्ठ वकील कपिल सिब्बल ने केंद्र की दलीलों का विरोध करते हुए कहा कि अगर राज्यपाल को यह अधिकार है, तो फिर राष्ट्रपति भी केंद्र सरकार के बिलों पर मंजूरी रोक सकते हैं। इस पर चीफ जस्टिस ने कहा कि संविधान की व्याख्या राजनीतिक परिस्थितियों को देखकर नहीं की जाएगी।

जस्टिस नरसिम्हा बोले- संविधान एक जीवंत दस्तावेज है जस्टिस नरसिंहा ने कहा कि राज्यपाल की शक्तियों की व्याख्या सीमित दायरे में नहीं की जा सकती। संविधान एक जीवंत दस्तावेज है और उसकी व्याख्या समय के अनुसार होनी चाहिए। उन्होंने कहा कि राज्यपाल पहले बिल को संशोधन के लिए लौटा सकते हैं और अगर विधानसभा संशोधन कर देती है, तो राज्यपाल बाद में मंजूरी भी दे सकते हैं।

राष्ट्रपति मुर्मू ने सुप्रीम कोर्ट से 14 सवाल पूछे थे 15 मई को राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मु ने अनुच्छेद 143(1) के तहत राष्ट्रपति और राज्यपाल की शक्तियों को लेकर 14 सवाल पूछे थे। राष्ट्रपति ने सुप्रीम कोर्ट से यह राय मांगी थी कि क्या कोर्ट राष्ट्रपति को राज्य विधानसभा से पास बिलों पर फैसला लेने के लिए समय सीमा तय कर सकता है।

तमिलनाडु से शुरू हुआ था विवाद यह मामला तमिलनाडु गवर्नर और राज्य सरकार के बीच हुए विवाद से उठा था। जहां गवर्नर से राज्य सरकार के बिल रोककर रखे थे। सुप्रीम कोर्ट ने 8 अप्रैल को आदेश दिया कि राज्यपाल के पास कोई वीटो पावर नहीं है।

इसी फैसले में कहा था कि राज्यपाल की ओर से भेजे गए बिल पर राष्ट्रपति को 3 महीने के भीतर फैसला लेना होगा। यह ऑर्डर 11 अप्रैल को सामने आया था। इसके बाद राष्ट्रपति ने मामले में सुप्रीम कोर्ट से राय मांगी और 14 सवाल पूछे थे।

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