राज्य

Vrindavan becomes the stage of Rangayan in JKK! | जेकेके में रंगायन का मंच बना वृंदावन!: ‘भ्रमर…

श्रीकृष्ण जन्माष्टमी के अवसर पर जवाहर कला केन्द्र (जेकेके) की ओर से आयोजित मधुरम महोत्सव का बुधवार को नृत्य नाटिका ‘भ्रमर गीत’ की मनोरम प्रस्तुति के साथ समापन हुआ।

श्रीकृष्ण जन्माष्टमी के अवसर पर जवाहर कला केन्द्र (जेकेके) की ओर से आयोजित मधुरम महोत्सव का बुधवार को नृत्य नाटिका ‘भ्रमर गीत’ की मनोरम प्रस्तुति के साथ समापन हुआ। गायन, नृत्य और रंगमंच के अंगों को समाहित करते हुए नित्य रास और लीला की संयुक्त प्रस्तु

.

उ. प्र. ब्रज तीर्थ विकास परिषद की ओर से संचालित गीता शोध संस्थान एवं रासलीला अकादमी, वृंदावन के कलाकारों ने यह प्रस्तुति दी।

ब्रज भाषा के प्रमुख संत कवि अष्ट सखा ने श्रीकृष्ण पर प्रमुख साहित्य का लेखन किया है। इनमें से ही एक कवि सूरदास इन्हीं के साथ ब्रज भाषा के आधुनिक कवि छैल बिहारी छैल ने भ्रमर गीत लिखा है। दोनों की रचनाओं को सामहित करते हुए इस प्रस्तुति की परिकल्पना एवं निर्देशन प्रो. दिनेश खन्ना ने की।

रंगायन का मंच श्रीकृष्ण के रंग में रंगे वृंदावन में तब्दील हो जाता है। नित्य रास जिसमें गोपियों की ओर से राधा कृष्ण को नृत्य के लिए आमंत्रित किया जाता है, इसके बाद युगल जोड़ी के नृत्य के साथ प्रस्तुति की शुरुआत होती है। प्रस्तुति का द्वितीय भाग जिसमें श्रीकृष्ण के मथुरा लौटने के बाद उनकी प्रतीक्षा कर रही गोपियों, प्रभु के पार्षद उद्धव का संदेश लाना और इसी बीच भ्रमर और गोपियों के संवाद के साथ प्रस्तुति आगे बढ़ती है।

ब्रज भाषा के प्रमुख संत कवि अष्ट सखा ने श्रीकृष्ण पर प्रमुख साहित्य का लेखन किया है।

इस भाग में गीत, संगीत व संवाद का सुंदर संयोजन देखने को मिला। ‘ऊधौ ब्रज जाय के सिराओ मात पित हिय, जिनके हृदय जरै बिरह अगन है। भोरी-भारी ब्रज नारी मानैं सर्वस्व मोय, त्याग दिये पति पूत पित बन्धुजन है। प्रॉंनन सों प्रानप्रिय प्रांनन को प्यारौ मानें, लावें नहिं ध्यान काऊ और को न मन है। ‘छैल’ समझाऔ जाय सुनाय संदेश मेरौ, जासौं मुक्त होय सिग जिय की जरन है।’ श्रीकृष्ण अपने पार्षद के हाथों अपना संदेश देकर उनकी प्रतीक्षा कर रहीं गोपियों के पास भेजते हैं कि वे प्रतीक्षा ना करे। श्रीकृष्ण की विरह अग्नि में जल रही गोपियों के मन में वे पल बार बार साकार होते हैं जो उन्होंने प्रभु के साथ बिताए हैं। उद्धव उन्हें समझाते है लेकिन गोपियों के निश्छल प्रेम के आगे उनका ज्ञान परास्त हो जाता है। इसी बीच एक भ्रमर (भौंरा) वहां आता है, गोपियां उससे कहती है कि तुम भी श्याम वर्ण हो और स्वाभाव में श्रीकृष्ण के समान हो शायद तुम्हें उन्हीं ने भेजा है तुम श्याम से हमसे मिलने को कहो, इसी बीच श्रीकृष्ण भी गोपियों के स्वप्न में आते हैं। उद्धव भी वृंदावन में बसने का मन बना लेते हैं और इसी चर्चा के साथ नृत्य नाटिका का भावना भरा समापन होता है।

गीता शोध संस्थान एवं रासलीला अकादमी के निदेशक प्रो. दिनेश खन्ना ने बताया कि अकादमी का उद्देश्य ब्रज की संस्कृति को बढ़ावा देना है। इसी उद्देश्य से जन जन के मन में समाए श्रीकृष्ण की लीला को लोकप्रीय तरीके से मंचित करने की योजना बनायी गयी। चार महीने की लगातार रिहर्सल के बाद कलाकारों ने यह प्रस्तुति दी। भ्रमर गीत का पहला मंचन मथुरा में हुआ, राजस्थान में इसका पहला मंचन रहा। प्रस्तुति में शामिल महिला कलाकारों का अभिनय का पहला अनुभव रहा फिर भी उन्होंने अपने अभिनय से इसमें जान डाल दी।

मंच पर श्रेयांश, हैरी चौटाला, तनिष्का राजपूत, कामिनी शर्मा, जयंती त्यागी, प्रिया शर्मा, अकांसा शर्मा, रोशनी शर्मा, डौली ठाकुर, सुमिति भारद्वाज, समीक्षा यादव, रक्षिता द्विवेदी, द्रौपदी, विनीता शर्मा, वैष्णवी शाही, चांदनी कुमारी, दीक्षा शर्मा, मोहिनी यादव, मोनिका गोला, निर्जला मिश्रा, वैभवी शाही, सुमन यदुवंशी शामिल रहे। मंच से परे सुनील पाठक ने पखावज, नंदी राम शर्मा ने बांसुरी, आकाश शर्मा ने हारमोनियम, मनमोहन कौशिक ने सारंगी वादन किया। उज्जवल प्रकाश मिश्रा ने ध्वनि, ओविस ने प्रकाश संयोजन संभाला व रितु विरेंद्र सिंह ने वस्त्र विन्यास, रोचना शर्मा व दिव्या पाठक नृत्य प्रशिक्षक रहीं। अन्य सहयोगियों में महेश शर्मा, मोहिनी कृष्ण दासी, दीपक शर्मा, रामवीर शर्मा, बच्चू सिंह, विक्रम दिवाकर, मनीष कुमार व सुनील कुमार शामिल रहे।

Related Articles

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Back to top button