राजनीति

मतों की हेराफेरी के जनक और उनके परनाती की सनक

कांग्रेस के नेतागण जब चुनाव हार जाते हैं, या हारने की सम्भावना देख लेते हैं, तब वे ईवीएम में गडबडी का राग अलापने लगते हैं। हॉलाकि चुनावी मतदान के लिए ईवीएम का इस्तेमाल ही हो रहा है- पहले की तत्सम्बन्धी व्यवस्था में होती रही गडबडियों को रोकने के लिए। ‘ईवीएम’ की विश्वसनीयता पर सवाल उठाते रहने वाले कांग्रेसी नेतागण अब इन दिनों मतदाता-सूची में हेराफेरी का एक नया शोर मचा रहे हैं। वे कहीं यह कह रहे हैं कि चुनाव आयोग द्वारा निर्मित सूची में फर्जी मतदाताओं के नाम दर्ज हैं, तो कहीं यह कि भारतीय जनता पार्टी मतों की चोरी कर के चुनावी जीत हासिल की है और तब सत्तासीन हुई है। वे कर्नाटक में मतदाता-सूची के शुद्धिकरण की मांग कर रहे हैं, तो बिहार में आसन्न चुनाव से पहले हो रहे उक्त शुद्धिकरण का विरोध करते रहे हैं और अब जब चुनाव आयोग ने वहां के 65 लाख फर्जी मतदाओं के नामों को सूची से खारिज कर दिया है, तब वे उन्हें वापस दर्ज करने-कराने के लिए पटना की सड़कों से ले कर दिल्ली की संसद तक हंगामा बरपा रहे हैं। 
ऐसे तमाम कांग्रेसी नेताओं को यह जान लेना चाहिए कि चुनावी मतों की हेरा-फेरी और प्रशासनिक धाक से मतों की चोरी के व्याकरण का आविष्कार कांग्रेस के द्वारा ही किया गया है, जिसके जनक हमारे ऐतिहासिक चाचाजी ही हैं। लोकसभा के प्रथम चुनाव (1952 में) ही इस आविष्कार का सफल परीक्षण कर हमारे चाचाजी ने कांग्रेस को चुनाव जीतने का यह मंत्र दे दिया था- भविष्य में इसका प्रयोग करते रहने के लिए। जी हां, हमारे चाचाजी, अर्थात वर्तमान कांग्रेस के सबसे नामदार युवा नेता के ‘परनाना’ जी! जिन्हें सारी दुनिया जवाहरलाल नेहरु के नाम से जानती है। आज उन्हीं का ‘परनाती’ उपरोक्त हंगामे का नेतृत्व कर रहा है। यह दावा मैं ऐसे ही नहीं कर रहा हूं, बल्कि उन्हीं चाचाजी के जमाने के उस प्रशासनिक अधिकारी की पुस्तक से कर रहा हूं जो उस चुनावी हेरा-फेरी में एक माध्यम बने हुए थे। उन दिनों उतर प्रदेश की सरकार के सूचना-निदेशक रहे शम्भूनाथ टण्डन ने अपने एक लेख में यह खुलासा करते हुए लिखा है कि “चुनाव में जीत-हार की हेरा-फेरी के लिए मत-पत्रों की अदली-बदली एवं ‘बूथ कैप्चरिंग’ जैसे हथकण्डों के मास्टरमाइण्ड थे- जवाहरलाल नेहरु।” उनके लेख का पूरा शीर्षक है- “जब विशन सेठ ने मौलाना आजाद को धूल चटाई थी, भारत के इतिहास की एक अनजान घटना।’’ अखिल भारतीय खत्री महासभा द्वारा हिन्दू महासभाई नेता केशनलाल सेठ के सम्मान में प्रकाशित स्मृति ग्रंथ में संलित है उनका यह लेख ।

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बकौल शम्भूनाथ टण्डन- “वर्ष 1952 में हुए प्रथम आम चुनाव में कांग्रेस के एक दर्जन दिग्गज प्रत्याशी चुनाव हार गये थे, जिन्हें नेहरु ने प्रशासन पर दबाव दे कर जबरिया जितवाया था। उनमें एक तो हमारे वो चाचा जी स्वयं भी थे।” दिग्गज कांग्रेसियों की हार का कारण यह था कि देश-विभाजन में कांग्रेस की भूमिका और उससे उत्त्पन्न हालातों से देश भर में कांग्रेस-नेतृत्व के विरुद्ध जनाक्रोश उबल रहा था। तब हिन्दू महासभा देश-विभाजन के लिए नेहरु व कांग्रेस को दोषी ठहराते हुए देश भर में उनके विरुद्ध वातावरण बना रखी थी और उस लोकसभा-चुनाव में प्रायः हर दिग्गज कांग्रेसी के खिलाफ अपने दमदार प्रत्याशी खडा किये हुए थी। उसने फूलपुर क्षेत्र में जवाहर लाल नेहरु के खिलाफ जाने-माने प्रखर संत प्रभुदत्त ब्रह्मचारी को खडा किया था, तो रामपुर में मौलाना आजाद के विरुद्ध वहां के लोकप्रिय नेता विशनचन्द सेठ को। कांग्रेस के बडे नेताओं को सर्वत्र कडी चुनौती मिल रही थी। किन्तु अन्तरीम सरकार की कमान चूँकि नेहरू के हाथ में ही थी, इस कारण चाचाजी ने कांग्रेस-प्रत्याशियों की जीत सुनिश्चित करने के लिए शासन-तंत्र का जम कर दुरुपयोग किया। मतदान के दौरान शासन-तंत्र ने लोकतंत्र के लिए जो किया सो तो किया ही; असली खेल तो हमारे चाचाजी मतगणना के दिन खेले। शासनतंत्र को यह पाठ पहले ही पढा दिया गया था कि लोकतंत्र की सलामती के लिए नेहरु को हर हाल में सदा ही अजेय बनाये रखना है; सो मतों की गिनती के दौरान प्रभुदत्त ब्रह्मचारी की जीत जब सुनिश्चित सी दिखने लगी, तब प्रशासनिक अधिकारियों ने अन्तिम चक्र में उनकी पेटी से 2000 मतपत्रों को निकाल कर नेहरुजी की पेटी में मिला कर गिनती पूरी कर दी। इस प्रकार हमारे चाचाजी बहुमत से चुनाव जीत गए। 
मालूम हो कि उन दिनों हर प्रत्याशी के लिए अलग-अलग मतपेटियां ही हुआ करती थीं, प्रत्याशी या दल के नाम किसी चिन्ह पर मुहर नहीं लगाई जाती थी, बल्कि मतपत्र को अपने पसंदिदा प्रत्याशी की पेटी में डाल देने का विधान था। इस कारण मतपत्रों की हेरा-फेरी बहुत आसानी से हो सकती थी। अपने लेख में टण्डन साहब लिखते हैं- “सेठ विशनचन्द्र के पक्ष में भारी मतदान हुआ था और मतगणना के पश्चात् प्रशासन ने बाक़ायदा लाउडस्पीकरों से सेठ विशनचन्द्र को 10000 वोटों से विजयी घोषित कर दिया था। उस जीत की ख़ुशी में हिन्दू महासभा के लोग विशाल विजय-जुलूस भी निकाल चुके थे। किन्तु जैसे ही यह समाचार वायरलैस के द्वारा लखनऊ होते हुए दिल्ली पहुँचा कि मौलाना अबुल आज़ाद चुनाव हार गए, सुनते ही चाचाजी तिलमिला उठे। उन्होंने तुरन्त उत्तर प्रदेश के तत्कालीन मुख्यमन्त्री पं. गोविन्द वल्लभ पन्त को चेतावनी दे डाली कि मैं मौलाना की हार किसी भी कीमत पर बर्दाश्त नहीं कर सकता, और अगर मौलाना को आप जिता नहीं सकते, तो शाम तक मुख्यमंत्री-पद से इस्तीफा दे दीजिए। फिर क्या था ! पंतजी ने
आनन फानन में मुझे (सूचना निदेशक- शम्भूनाथ टण्डन को) बुलाया और रामपुर के जिलाधिकारी से सम्पर्क कर उसे किसी भी कीमत पर मौलाना आजाद को जिताने का आदेश देने को कहा” । बकौल टण्डन, उन्होंने पंतजी से जब यह बताया कि ऐसा करने से देश में दंगे भी भड़क सकते हैं, तो पन्तजी ने कहा कि ”देश जाये भाड़ में, नेहरू जी का हुक़्म है”। बकौल ट्ण्डन- “फिर तो मौलाना को जिताने के लिए रामपुर के जिलाधिकरी निर्देशित कर दिए गए। तदोपरांत रामपुर का कोतवाल जीत की बधाइयां स्वीकार कर रहे सेठ विशनचन्द्र के पास गया और कहा कि आपको डीएम साहब बुला रहे हैं। सेठ जी जब जिलाधिकारी से मिले तब उसने कहा कि मतगणना अभी-अभी दुबारा होने वाली है। हिन्दू महासभा के उस उमीदवार ने इसका कड़ा विरोध किया और कहा कि मेरे सभी कार्यकर्ता विजय-जुलूस निकाले हुए हैं, तो ऐसे में आप मेरे मतगणना-एजेंट के बिना दुबारा मतगणना कैसे कर सकते हैं? लेकिन उनकी एक नहीं सुनी गई। जिलाधिकारी ने सेठ जी के सामने ही उनकी मत-पेटी से हजारों मत-पत्र निकाल कर मौलाना की मत-पेटी में
मिलाते हुए साफ़-साफ़ कह दिया कि सेठ जी! हम अपनी नौकरी बचाने के लिए आपकी बलि ले रहे हैं, क्योंकि यह नेहरूजी का आदेश है। असहाय बने सेठ जी देखते रह गए और जिलाधिकारी ने पूर्व घोषित चुनाव-परिणाम को रद्द करते हुए पुनघोर्षित चुनाव-परिणाम के आधार पर हिन्दू महासभा के उस प्रत्याशी को चुनाव हरा कर कांग्रेस-प्रत्याशी मौलाना अब्दुल कलाम को विजयी घोषित कर दिया”। 
तो इस तरह से हमारे चाचाजी अर्थात वर्तमान कांग्रेस के सदाबहार युवा नेता के परनाना जी ने कांग्रेस को चुनावी जीत-हार कामंत्र प्रदान करते हुए लोकतंत्र की स्थापना का श्रेय भी बटोर लिया। बाद में विशनचन्द सेठ सन 1957 व सन 1962 में दो-दो बार हिन्दू महासभा से निर्वाचित हो कर सांसद बने, किन्तु प्रथम चुनाव में तो उनका सारा श्रम नेहरु-कांग्रेस से लोकतंत्र का पाठ पढने में ही व्यर्थ हो गया। अब उन्हीं नेहरु की विरासत को ढो रही वर्तमान कांग्रेस का कथित युवा नेता चुनाव की ‘ईवीएम-प्रणाली’ में गडबडी और ‘मतदाता-सूची में हेराफेरी’ का शोर मचा रहा है, तो यह उसकी सनक मात्र है, जिसे ‘खिसियानी बिल्ली खम्भा नोचे’ के सिवाय और कुछ नहीं कहा जा सकता।  
– मनोज ज्वाला 

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