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Acharya Vardhman Sagar Ji said that knowledge is the mirror of the soul | आचार्य वर्धमान सागर…

जैन नसिया में चतुर्मास के दौरान पहली बार आचार्य श्री वर्धमान सागर जी महाराज ने केश लोचन किया।

आचार्य वर्धमान सागर जी ने कहा कि आप लोग अपने चेहरे को अनेक बार देखते हैं, चेहरे की, वेशभूषा की कमियां ठीक करते हैं। ज्ञान भी आत्मा का दर्पण है, जिसके द्वारा आप अपनी कमियों को दूर कर सकते हैं। त्याग और संयम, दीक्षा के बिना मुक्ति नहीं होती हैं। त्याग

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बोले- विकार दूर होते ही शक्ति बढ़ती है

आचार्य श्री वर्धमान सागर जी महाराज ने टोंक नगर की धर्म सभा में कहा- शुभचंद्र आचार्य ने धूल को तप के बल पर स्वर्ण बना दिया। सिद्ध क्षेत्र सोनागिर इसी कारण विख्यात हैं। शुभचंद्र आचार्य ने स्वर्ण समान आत्मा को शुद्ध करने के लिए तप किया। इससे आत्मा से कर्म और विकार दूर होते हैं आप सभी के शरीर में आत्मा रूपी देव है। जब आपको व्रत नियम के लिए प्रेरणा देते हैं, तो आप कहते हैं कि हमारे में शक्ति नहीं हैं।

रत्नत्रय धर्म से शक्ति मिलती हैं। जैसे जैसे विकार दूर होते हैं शक्ति बढ़ती है। संसार के सब प्राणियों का भला सोचने से तप त्याग से शक्ति मिलती है। सिद्ध अवस्था के लिए सोलह कारण भावना का चिंतन जरूरी है। प्रथमाचार्य श्री शांति सागर जी महाराज ने भी यश नाम कीर्ति से दूर रहकर अक्षय कीर्ति शक्ति प्राप्त की। धर्म और भावना से आत्मा शुद्ध होती हैं। भावना से जीवन निर्मल होता हैं।

आचार्य वर्धमान सागर जी महाराज ने सोमवार को धर्मसभा में केश लोचन किया।

आचार्य श्री वर्धमानसागर जी ने केश लोचन किया

आचार्य श्री वर्धमान सागर जी ने अपना केशलोचन किया। केशलोचन के बारे में संघ के मुनि श्री हितेंद्रसागर जी ने चर्चा में बताया कि प्रत्येक दिगंबर साधु को 2 माह से 4 माह की अवधि के भीतर के केशलोचन करना अनिवार्य है। केशलोच दिगंबर साधु का मूल गुण है। केशलोचन के माध्यम से शरीर से राग और मोह दूर होता है।

केशलोचन की प्रक्रिया में मुनि श्री हितेंद्र सागर जी ने बताया कि केशलोचन करते समय केवल राख का उपयोग किया जाता है। जैन धर्म अहिंसा प्रधान धर्म है बालों का लोचन अगर नहीं किए जाएं तो उसमें छोटे-छोटे जीवों की उत्पत्ति होने की संभावना होती है। जैन साधु अहिंसा धर्म के महाव्रती होते हैं। हाथों से बाल इसलिए उखाड़े जाते हैं कि बालों को कटिंग करने के लिए सेविंग कराने के लिए अन्य द्रव्य की आवश्यकता होती है जैन साधु अपरिग्रही होते हैं।

हाथ से करते हैं केशलोचन

इसलिए जैन साधु अपने हाथ से केशलोचन करते हैं। बाल सौंदर्य का प्रतीक हैं इससे राग और आकर्षण होता है। केश लोच से शरीर से ममत्व दूर होता है केश लोचन के समय तप,संयम, धैर्य के साथ धर्म की प्रभावना होती है जिस दिन जैन साधु केशलोच करते हैं उस दिन उपवास करते हैं। केशलोचन देखकर अनुमोदना करने से पुण्य प्राप्त होकर कर्मों की निर्जरा होती है। इस अवसर साधुओं एवं अनेक महिलाओ ने वैराग्य पूर्ण भजन गा कर केशलोचन की तपस्या की अनुमोदना की।

समाज के प्रवक्ता पवन कंटान और विकास जागीरदार ने बताया कि प्रतिदिन 7 बजे आचार्य वर्धमान सागर जी महाराज की भक्तिमय आरती की जाती है, जिसमें काफी संख्या में लोग उपस्थित रहते हैं। उसके बाद शास्त्र ज्ञान, जिनवाणी ज्ञान, स्वाध्याय वाचन होता है

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