80 साल पहले, जब जापान पर गिरा था दुनिया का पहला एटम बम, जानिए उस दिन सुबह क्या हुआ था?

6 अगस्त 1945 को अमेरिका ने जापान के हिरोशिमा शहर पर ‘लिटिल बॉय’ नामक परमाणु बम गिराया था. यह दुनिया में युद्ध के दौरान परमाणु हथियार का पहला प्रयोग था. बम गिरने के बाद हिरोशिमा शहर का बड़ा हिस्सा पूरी तरह तबाह हो गया था और लगभग 1,40,000 लोग मारे गए थे. तीन दिन बाद 9 अगस्त को अमेरिका ने जापान के ही दूसरे शहर नागासाकी पर एक और बम गिराया था, जिसमें लगभग 70,000 लोगों की जान चली गई थी.
शांति स्मारक पर आयोजित हुआ कार्यक्रम
हिरोशिमा के शांति स्मारक पर 6 अगस्त 2025, बुधवार को इस त्रासदी की 80वीं बरसी पर विशेष कार्यक्रम आयोजित किया गया. इसमें जापान के प्रधानमंत्री शेगेरू इशिबा, हिरोशिमा के मेयर काजुमी मत्सुई और दुनिया भर से आए अधिकारियों ने हिस्सा लिया. इस मौके पर लोगों ने बढ़ते परमाणु हथियारों के खतरे को लेकर चिंता जताई और शांति की अपील की. प्रधानमंत्री इशिबा और अन्य नेताओं ने समाधि स्थल पर पुष्प अर्पित किए.
200,000 से अधिक लोगों की जान गई
हिरोशिमा और नागासाकी पर गिराए गए दो परमाणु बमों की वजह से करीब 2 लाख लोगों की मौत हुई थी. कुछ लोग विस्फोट से तुरंत मारे गए, जबकि कई लोग रेडिएशन से पैदा हुई बीमारियों और जलने के कारण धीरे-धीरे मौत के शिकार हुए. इन बमों का असर आज भी लोगों की जिंदगी को प्रभावित कर रहा है.
प्रत्यक्षदर्शियों की दर्दनाक कहानियां
हिरोशिमा हमले के बाद जीवित बचे शिंगो नाइतो ने बीबीसी को बताया कि उनके पिता विस्फोट में बुरी तरह जल गए थे और अंधे हो गए थे. उनकी खाल लटक रही थी और वे अपने बेटे का हाथ तक नहीं पकड़ पा रहे थे. इस हमले में उनके पिता और दो छोटे भाई-बहनों की मौत हो गई थी.
बम गिराए जाने का तरीका और विनाश
6 अगस्त की सुबह, अमेरिका ने एक बमवर्षक विमान से ‘लिटिल बॉय’ नाम का यूरेनियम आधारित परमाणु बम गिराया था. बम विमान से गिरने के 44 सेकंड बाद, जमीन से करीब 500 मीटर ऊपर हवा में ही फट गया और एक विशाल आग का गोला बन गया, जिसने पूरे शहर को अपनी चपेट में ले लिया.
बचपन की भयावह यादें
कुनिहिको इडा सिर्फ तीन साल के थे, जब यह हमला हुआ. उनका घर विस्फोट के केंद्र (हाइपोसेंटर) से एक किलोमीटर से भी कम दूरी पर था. धमाके के बाद वे मलबे के नीचे दब गए, लेकिन उनके दादा ने उन्हें बचा लिया. हालांकि उनकी मां और बहन कुछ समय बाद रेडिएशन से हुई बीमारियों के कारण चल बसीं.
रेडिएशन का वर्षों तक असर
हिरोशिमा में रेडिएशन का असर कई वर्षों तक देखा गया. लोगों को त्वचा की बीमारियों, खून बहने और कैंसर जैसी गंभीर समस्याओं का सामना करना पड़ा. हमले में बचे लोग आज भी सामाजिक भेदभाव का शिकार होते हैं, इसलिए कई लोगों ने अपने अनुभवों को छिपाए रखा.
आज भी जिंदा हैं कुछ गवाह
अब हिरोशिमा हमले के प्रत्यक्षदर्शियों की संख्या तेजी से घट रही है. लगभग 100 लोग अभी जीवित हैं, लेकिन उनमें से कई अब भी उस दर्द और सामाजिक अलगाव के डर से अपनी कहानी नहीं बताना चाहते. कुनिहिको जैसे लोगों के लिए ये यादें ऐसी हैं जिन्हें दोबारा जीना बेहद कठिन है.