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SIR पर तकरार : चुनाव आयोग की शक्तियों और सुप्रीम कोर्ट के सीमित दखल को समझिए

बिहार में चल रहे विशेष सघन पुनरीक्षण यानी SIR को लेकर राजनीतिक पार्टियों का विरोध जारी है, लेकिन इस बीच SIR अपने तय कार्यक्रम के अनुसार ही चल रहा है. सुप्रीम कोर्ट ने भी अब तक बहुत सीमित दखल दिया है. कोर्ट ने इस दलील को अस्वीकार किया है कि चुनाव आयोग के पास इस प्रक्रिया की शक्ति नहीं थी. इस लेख में हम चुनाव आयोग के अधिकारों और कोर्ट की भूमिका से जुड़े संवैधानिक और कानूनी पहलुओं को समझेंगे.

अनुच्छेद 324
चुनाव आयोग एक संवैधानिक संस्था है. इसका दायित्व स्वतंत्र और निष्पक्ष चुनाव करवाना है. संविधान का अनुच्छेद 324 चुनाव आयोग को चुनाव के संचालन, निर्देशन और नियंत्रण का अधिकार देता है. सुप्रीम कोर्ट ने 1977 के मोहिंदर सिंह गिल बनाम मुख्य निर्वाचन आयुक्त मामले में इन शक्तियों को मान्यता दी थी.

अनुच्छेद 329
अनुच्छेद 329 अदालतों को चुनावी प्रक्रिया में दखल से रोकता है. यही कारण है कि चुनाव की अधिसूचना जारी होने के बाद हाई कोर्ट या सुप्रीम कोर्ट आयोग के कामकाज में दखल नहीं देते. चुनाव से जुड़ी किसी भी आपत्ति को चुनाव संपन्न होने के बाद ही उठाया जा सकता है. इसके लिए हाई कोर्ट में चुनाव याचिका दाखिल की जाती है.

अनुच्छेद 326
संविधान का अनुच्छेद 326 इस बात का वादा करता है कि देश में वयस्क मताधिकार होगा. इसके तहत 18 वर्ष या उससे अधिक के हर उस नागरिक को मतदान का अधिकार दिया गया है जो सजायाफ्ता होने या मानसिक रूप से अस्वस्थ होने के चलते इसके अयोग्य न हो. यहां ध्यान देने योग्य बात यह है कि वोट डालने का अधिकार सिर्फ भारतीय नागरिकों को है.

इलेक्टोरल रोल यानी मतदाता सूची
इलेक्टोरल रोल यानी योग्य मतदाताओं की सूची तैयार करना चुनाव आयोग का काम है. इस सूची में नाम डालने से पहले आयोग आवेदक की पहचान की पुष्टि कर सकता है. जनप्रतिनिधित्व कानून, 1950 की धारा 16 के तहत तहत 18 साल से अधिक आयु के भारतीय नागरिक को वोटर लिस्ट में जगह मिलती है. धारा 19 में प्रावधान है कि किसी निर्वाचन क्षेत्र की वोटर लिस्ट में जगह उसी व्यक्ति को मिलेगी जो उस क्षेत्र का निवासी हो.

विशेष सघन पुनरीक्षण यानी SIR
1950 के एक्ट की धारा 21 चुनाव आयोग को यह शक्ति देती है कि वह मतदाता सूची की समीक्षा और संशोधन कर सके. इसी में विशेष पुनरीक्षण यानी SIR का भी प्रावधान है. इस कानून में SIR का समय, प्रक्रिया और नियम तय करने का अधिकार चुनाव आयोग को दिया गया है. SIR को सुचारू रूप से चलाने के लिए आयोग व्यवहारिक निर्णय ले सकता है.

कैसे होता है SIR?
SIR के तहत इसके तहत बूथ लेवल अधिकारी (BLO) एक-एक मतदाता की पुष्टि करते हैं. नए मतदाताओं को जोड़ना और अयोग्य मतदाताओं को लिस्ट से हटाने का काम समयबद्ध तरीके से किया जाता है. मृत लोगों के अलावा उन लोगों के नाम लिस्ट से हटाए जाते हैं जो किसी क्षेत्र में अब नहीं रहते. नागरिकता या आवास का मान्य दस्तावेज न दे पाने वाले लोगों को भी एक जगह की लिस्ट से हटाया जाता है. मान्य दस्तावेज तय करना चुनाव आयोग के अधिकार क्षेत्र में आता है.

बिहार में चुनाव पर असर
बिहार में वर्तमान विधानसभा का कार्यकाल 22 नवंबर को खत्म हो रहा है. उससे पहले चुनाव प्रक्रिया पूरी कर नई विधानसभा का गठन होना जरूरी है. ऐसे में चुनाव आयोग अक्टूबर की शुरुआत में चुनाव की घोषणा कर सकता है. राज्य में इस समय चल रहे SIR की अंतिम सूची 30 सितंबर को जारी हो जाएगी. 1 अगस्त को जारी ड्राफ्ट लिस्ट में 65 लाख ऐसे लोग जगह नहीं पा सके थे जो जनवरी 2025 में बनी मतदाता सूची में थे.

ड्राफ्ट लिस्ट को लेकर दाखिल दावे और आपत्तियों पर विचार हो रहा है. आयोग ने यह भी कहा है कि फाइनल लिस्ट जारी होने के बाद भी लोगों के आवेदन पर विचार होगा. फिर भी यह अनुमान लगाया जा सकता है कि जनवरी 2025 की मतदाता सूची में शामिल लगभग 60 लाख लोग इस बार बिहार चुनाव में मतदान नहीं कर सकेंगे. चुनाव आयोग की वैधानिक शक्तियों को मान्यता देते हुए सुप्रीम कोर्ट ने पुरानी लिस्ट के आधार पर चुनाव करवाने की मांग को अनसुना कर दिया है.

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