RBI से पहले नेताजी ने स्थापित किया था बैंक ऑफ आजाद हिंद, भारत को मिली थी अपनी पहली करेंसी

अप्रैल 1944 का महीना था और जगह थी रंगून. जहां जमाल एवेन्यू के पास एक खाली पड़े बंगले में बढ़ई खाली कमरों को पूर्ण रूप से एक बैंक का रूप दे रहे थे, जो एक हफ्ते पहले तक पूरी तरह से खाली पड़ा था, लेकिन अब यह बंगला एक बैंक का मुख्यालय बनने वाला था और यह बैंक रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया (RBI) नहीं बल्कि बैंक ऑफ आजाद हिंद था. यह बैंक आजाद हिंद सरकार के अधीन था, जिसका नेतृत्व नेताजी सुभाष चंद्र बोस कर रहे थे.
साल 1949 में RBI के पूर्ण रूप से स्वतंत्र होने से पांच साल पहले ही नेताजी ने आजाद हिंद बैंक (बैंक ऑफ आजाद हिंद) की स्थापना की थी. इस बैंक के स्थापना का उद्देश्य भारत के स्वतंत्रता संग्राम को आर्थिक मदद देना था और यह साबित करना था कि भारत राजनीतिक आजादी मिलने से पहले ही अपना वित्तीय संस्थान चला सकता है.
नेताजी सुभाष चंद्र बोस के स्थापित किए गए बैंक ऑफ आजाद हिंद की इस छोटी लेकिन बेहद प्रभावशाली कहानी का जिक्र एस.ए. अय्यर की किताब, “Unto Him a Witness” में किया गया है. नेताजी के मंत्रिमंडल में काम कर चुके अय्यर ने अपनी किताब में कहा, “इस दौर में नेताजी ने 5 अप्रैल, 1944 को रंगून में भारत के बाहर पहला राष्ट्रीय आजाद हिंद बैंक की स्थापना की, ताकि भारत के स्वतंत्रता संग्राम में वित्तीय मदद दी जा सके.”
घेराबंदी में हुई आजाद हिंद बैंक की स्थापना
अय्यर ने किताब में जिस दौर का जिक्र किया, वह बेहद तनावपूर्ण समय था. नेताजी उस वक्त इंफाल-कोहिमा अभियान के मोर्चे पर जाने की तैयारी कर रहे थे. वहीं, जापानी और बर्मा के अधिकारी युद्ध के समय में बैंक खोलने को लेकर संदेहास्पद स्थिति में थे, क्योंकि उन्हें राजनीतिक उथल-पुथल होने का डर था. जबकि उनके कुछ साथियों को भी बैंक की पूंजी, स्थिरता और समय को लेकर चिंता थी, लेकिन नेताजी इन सभी चिंताओं से दूर थे, उन पर किसी भी स्थिति का कोई असर नहीं पड़ा.
अय्यर के मुताबिक, बोस ने कहा, “मुझे बैंक तो चाहिए ही और वह भी अगले कुछ दिनों में ही. इससे पहले कि मैं मोर्चे पर जाऊं, मैं बैंक को खोलुंगा और इसके बाद ही मोर्चे पर जाऊंगा.”
चार भारतीयों ने मिलकर बैंक के संचालन के लिए जुटा दी पूंजी
अय्यर के मुताबिक, आजाद हिंद बैंक के लिए पूंजी का इस्तेमाल साउथ-ईस्ट एशिया में बसे भारतीयों प्रवासियों से हुआ. वहीं, चार ऐसे भारतीय सामने आए और बैंक के शुरुआत में संचालन के लिए जरूरी पूंजी जुटा दी. उन सभी के मन में एक आजाद भारत का सपना था.
बैंक ने जारी की अपनी करेंसी
आजाद हिंद बैंक ने अपनी शुरुआत के कुछ ही समय बाद अपनी खुद की करेंसी जारी की, जिन्हें रुपये के तौर पर छापे गया और जो आजाद हिंद फौज (INA) के कंट्रोल वाले इलाकों में चलाए गए. भले ही भारत में ब्रिटिश शासन के दौरान इस करेंसी की कोई कीमत नहीं होती थी, लेकिन भारत के वित्तीय संप्रभुत्व के तौर पर यह एक प्रतीकात्मक ऐलान था. वहीं, खुद एस. ए. अय्यर ही इस बैंक के अध्यक्ष भी थे.
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