1929 Lahore Conspiracy Case: इन गद्दारों के कारण हुई भगत सिंह, राजगुरु और सुखदेव को फांसी,…

भारत से साइमन कमीशन की वापसी को लेकर 1920 में देशभर में विरोध प्रदर्शन हो रहे थे. उस वक्त लाहौर में विरोध प्रदर्शन की अगुवाई लाला लाजपत राय कर रहे थे. ब्रिटिश पुलिस के लाठीचार्ज के चलते उनकी मौत हो गई. इस हत्या को लेकर देशभर में गुस्सा था और तब भगत सिंह, राजगुरु और सुखदेव ने उनकी हत्या का बदला लेने का फैसला किया.
अप्रैल 1929 में भगत सिंह और बटुकेश्वर दत्त ने दिल्ली में केंद्रीय विधान परिषद में बम फोड़ा और बाद में खुद को राजनीतिक बंदी बताते हुए सरेंडर कर दिया. उन्होंने जेल में रहने के दौरान जायज चीजें (किताबें, सिविल ड्रेस) देने की ब्रिटिश हुकूमत से मांग की.
1929 में शुरू हुए लाहौर षड्यंत्र मुकदमे (जिसमें कई अन्य मामले भी शामिल थे). इस केस में कुल 25 लोग नामजद किए गए. इसमें चंद्रशेखर आजाद समेत 9 फरार थे. इस केस में अभियोजन पक्ष ने करीब 500 लोगों की गवाही दिलवाई.
भगत सिंह को स्ट्रेचर पर लाया गया कोर्ट
लेखक एजी नूरानी ने अपनी किताब द ट्रॉयल ऑफ भगत सिंह पॉलिटिक्स ऑफ जस्टिस में लिखा है कि महीने भर बाद जुलाई में सुनवाई फिर से शुरू हुई तो बटुकेश्वर दत्त की तबीयत इतनी ज्यादा खराब थी कि उन्हें पेशी पर नहीं ले जाया जा सकता था. भगत सिंह और अमर दास की भी हालात खराब थी. राजनीतिक बंदी होने के बावजूद इनकी पेशी हथकड़ी लगाकर की जाती रही, जबकि भगत सिंह को स्ट्रेचर पर कोर्ट में लाया गया था.
भगत सिंह ने मजिस्ट्रेट से क्या कहा
कोर्ट में सुनवाई के दौरान भगत सिंह ने कहा कि मिस्टर मजिस्ट्रेट, पुलिस का हमें हथकड़ियां लगाकर लाना राजनाीतिक बंदियों की बेइज्जती है. आपको पुलिस पर आंख मूदकर भरोसा नहीं करना चाहिए और निष्पक्ष होकर सुनवाई करनी चाहिए.
कौन-कौन थे गद्दार
केस की सुनवाई आगे बढ़ने के साथ ही कुछ क्रांतिकारियों ने पाला बदल लिया और अपने ही साथियों के साथ गद्दारी करने लगे. इस लिस्ट में पहला नाम है हंसराज वोहरा का, जो लाहौर कॉलेज में एक वक्त भगत सिंह के साथी हुआ करते थे. राजगुरु पर लिखी अपनी किताब राजगुरु इनविजिबल रिवॉल्यूशनरी में अनिल वर्मा ने लिखा है कि राजगुरु तब तक फरार चल रहे थे. हालांकि इसी बीच उन्हें सबसे बड़ा झटका लगा, जिसने भगत सिंह और उनके साथियों के संगठन की नींव हिलाकर रख दी. उन्होंने लिखा है कि बारी-बारी से हंसराज वोहरा, घोष और बनर्जी सरकारी गवाह बनते चलते गए और क्रांतिकारियों के सारे राज खुलते चले गए.
गद्दारों को अंग्रेजों से मिले इनाम
हंसराज वोहरा को केस खत्म होते ही पढ़ाई के लिए अंग्रेजों ने लंदन भेजा, जहां उन्होंने पत्रकारिता की डिग्री ली. बाद में अमेरिका में शिफ्ट होने के बाद उनकी मौत हो गई. सॉन्डर्स की मौत के दौरान भगत सिंह के साथ रहने वाले जयगोपाल को अंग्रेजों ने लंबे वक्त भत्ता दिया. ट्रिब्यून की खबर के मुताबिक सॉन्डर्स मर्डर मामले में जयगोपाल ने भगत सिंह के खिलाफ गवाही दी. केस खत्म होने के बाद उन्हें 20,000 का ईनाम भी दिया गया.
गद्दारों में अगल नाम है फणीन्द्र नाथ घोष और मनमोहन बनर्जी का. द हिंदू के एक आर्टिकल (डेथ फॉर फ्रीडम) के मुताबिक जब शुक्ला को 1934 में घोष मर्डर के चलते फांसी दी गई तो शुक्ला के माथे पर शौर्य और मुंह से वन्दे मातरम ही गूंजा था.
कौन थे सरदार बहादुर सर शोभा सिंह
लाहौर षड्यंत्र मुकदमे में गवाही देने वालों में एक प्रमुख नाम था सरदार बहादुर सर शोभा सिंह (मशहूर लेखक खुशवंत सिंह के पिता) का. सर शोभा सिंह अंग्रेजों के करीबी और एक बड़े बिल्डर हुआ करते थे. 7 अक्तूबर 1930 को स्पेशल ट्रिब्यूनल ने सेंट्रल जेल लाहौर में अपना फैसला सुनाया. भगत सिंह, सुखदेव और राजगुरु को फांसी की सजा दी गई. फांसी तय तारीख से पहले ही दे दी गई.
ये भी पढ़ें