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‘किसी की पॉजीशन या रसूख देखकर…..’, रेणुकास्वामी मर्डर केस में एक्टर दर्शन की जमानत रद्द करते…

रेणुकास्वामी मर्डर केस में सुप्रीम कोर्ट ने कन्नड़ फिल्म एक्टर दर्शन की जमानत रद्द करते हुए कहा कि किसी व्यक्ति की पॉजीशन या रसूख को देखकर कानूनी जवाबदेही में छूट नहीं दी जा सकती है. गुरुवार (14 अगस्त, 2025) को सुप्रीम कोर्ट ने दर्शन समेत सभी आरोपियों की जमानत रद्द कर दी और उन्हें आत्मसमर्पण करने का निर्देश दिया है.

जस्टिस जे बी पारडीवाला और जस्टिस आर महादेवन की बेंच ने कहा कि मशहूर हस्तियां ऐसी रोल मॉडल होती हैं जिन पर बड़ी जिम्मेदारी होती है. 24 जुलाई को पिछली सुनवाई में सुप्रीम कोर्ट ने फैसला सुरक्षित रख लिया था. कर्नाटक सरकार ने हाईकोर्ट के फैसले को चुनौती दी थी, जिस पर सुनवाई में सुप्रीम कोर्ट ने दर्शन को जमानत देने के हाईकोर्ट के तरीके पर भी चिंता जताई थी. 24 जुलाई को कोर्ट ने कहा था कि हम अभी दोषसिद्धि या बरी करने को लेकर कोई फैसला नहीं सुना रहे हैं. 

कल बेंच ने फैसला सुनाते हुए कहा, ‘भारत का संविधान अनुच्छेद 14 के तहत कानून के समक्ष समानता सुनिश्चित करता है, और यह अनिवार्य करता है कि कोई भी व्यक्ति, चाहे वह कितना भी धनी, प्रभावशाली या लोकप्रिय क्यों न हो, कानून से छूट का दावा नहीं कर सकता. मशहूर हस्ती होने का दर्जा किसी आरोपी को कानून से ऊपर नहीं उठा देता, न ही उसे जमानत देने जैसे मामलों में तरजीही व्यवहार का अधिकार देता है.’

कर्नाटक हाईकोर्ट ने पिछले साल 13 दिसंबर को दर्शन और मामले के अन्य आरोपियों को जमानत दे दी थी. सुप्रीम कोर्ट ने हाईकोर्ट के आदेश में‘गंभीर खामियों की ओर इशारा किया. कोर्ट ने कहा, ‘आईपीसी की धारा 302 के तहत अपराध की गंभीरता और साजिश के आरोप के बावजूद, हाईकोर्ट जांच के दौरान एकत्र की गई दोषपूर्ण सामग्री पर विचार करने में विफल रहा.’

सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि चाहे आरोपी 140 दिन से अधिक समय तक हिरासत में रहे हों या रिहाई के बाद उन्होंने अच्छा आचरण प्रदर्शित किया हो, इससे जमानत का आदेश सतत नहीं हो जाता, विशेष रूप से जमानत देने के चरण में भौतिक कारकों पर विचार न किए जाने के कारण. कोर्ट ने वर्तमान मामले में षड्यंत्र, हत्या, साक्ष्य नष्ट करने और साक्ष्य गायब करने के आरोपों की मौजूदगी को भी रेखांकित किया.

बताया गया कि जमानत मुख्य रूप से अभिनेता की कथित गंभीर चिकित्सा स्थिति के आधार पर दी गई थी. हालांकि, उनके मेडिकल रिकॉर्ड और उसके बाद के आचरण की जांच करने के बाद सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि यह याचिका भ्रामक, अस्पष्ट और अत्यधिक बढ़ा-चढ़ाकर पेश की गई है.

बेंच ने कहा, ‘लोकप्रियता दंड से मुक्ति का कवच नहीं हो सकती. जैसा कि इस हाईकोर्ट ने कहा है, प्रभाव, संसाधन और सामाजिक स्थिति जमानत देने का आधार नहीं बन सकते, जहां जांच या मुकदमे पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ने का वास्तविक खतरा हो.’ जस्टिस पारडीवाला ने कहा, ‘यह फैसला यह संदेश देता है कि आरोपी चाहे कितना भी बड़ा क्यों न हो, वह कानून से ऊपर नहीं है.’

उन्होंने कहा, ‘इसमें एक कड़ा संदेश है कि किसी भी स्तर पर न्याय प्रदान करने वाली प्रणाली को किसी भी कीमत पर यह सुनिश्चित करना चाहिए कि कानून का शासन कायम रहे. कोई भी व्यक्ति कानून से ऊपर या नीचे नहीं है. न ही हम इसका पालन करते समय किसी की अनुमति मांगते हैं. समय की मांग है कि हर समय कानून का शासन कायम रहे.’

कोर्ट ने राज्य सरकार को जेल में बंद आरोपियों को विशेष सुविधा प्रदान करने के प्रति भी आगाह किया. बेंच ने कहा, ‘जिस दिन हमें यह पता चला कि आरोपियों को फाइव स्टार फैसिलिटी दी जा रही हैं तो पहला कदम अधीक्षक और अन्य सभी अधिकारियों को निलंबित करने का होगा.’

यह फैसला कर्नाटक सरकार की ओर से हाईकोर्ट के आदेश के खिलाफ दायर अपील पर आया है. दर्शन पर अभिनेत्री पवित्रा गौड़ा और कई अन्य लोगों के साथ मिलकर 33 वर्षीय रेणुकास्वामी नाम के एक फैन का अपहरण करने और उसे प्रताड़ित करने का आरोप है. रेणुकास्वामी ने पवित्रा को कथित तौर पर अश्लील मैसेज भेजे थे. पुलिस ने आरोप लगाया कि रेणुकास्वामी को जून 2024 में तीन दिन तक बेंगलुरु के एक शेड में रखा गया, प्रताड़ित किया गया और उसका शव एक नाले से बरामद हुआ.

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