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Baba Ramdev was worshipped with folk songs and terhatali | लोक गीत और तेरहताली से की बाबा…

जवाहर कला केन्द्र में यह दृश्य देखने को मिला। मौका रहा, रामदेव जयंती के अवसर पर आयोजित विशेष कार्यक्रम का।

लोकदेवता रामदेव की महिमा का बखान करते लोक गीतों की गूंज, भजनों पर तेरहताली नृत्यों में मंजीरे की झंकार और संवाद में जनप्रिय बाबा रामदेव पर विशेषज्ञों के विचारों का प्रवाह। संवाद प्रवाह में नीरज कुमार त्रिपाठी, अधीक्षक जयपुर सर्किल पुरातत्व एवं संग्रह

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प्रसिद्ध लोक गायिका सुमित्रा देवी कामड़ ने लोकगीत गाए, वहीं लीला देवी समूह व राधिका देवी समूह के कलाकारों ने तेरहताली व मंजीरा नृत्य की प्रस्तुति दी।

प्रसिद्ध लोक गायिका सुमित्रा देवी कामड़ ने लोकगीत गाए, वहीं लीला देवी समूह व राधिका देवी समूह के कलाकारों ने तेरहताली व मंजीरा नृत्य की प्रस्तुति दी। डॉ. सुमन धनाका ने बाबा रामदेव की जीवनी पर प्रकाश डालते हुए सामाजित समरसता और लोक कल्याण में उनकी भूमिका के विषय में बताया। उन्होंने बताया कि बाबा रामदेव हिंदुओं में कृष्ण के अवतार के रूप में तो मुस्लिमों में रामसा पीर के रूप में पूजे जाते हैं। उन्होंने समाज के सभी वर्गों को समाहित कर कामड़ समुदाय की स्थापना की।

कीर्तन जिसे जम्मा जागरण आंदोलन कहा जाए उसके जरिए भक्ति और सामाजिक समरसता का पाठ पढाया।

कीर्तन जिसे जम्मा जागरण आंदोलन कहा जाए उसके जरिए भक्ति और सामाजिक समरसता का पाठ पढाया। डॉ. धनाका ने कहा कि बाबा रामदेव की वाणी में नैतिक शिक्षा और वैश्विक बंधुत्व के भावों की प्रधानता रही। नीरज कुमार त्रिपाठी ने बताया कि 15वीं सदी के पूर्वार्ध में द्वारकाधीश की कृपा से बाबा रामदेव का प्राकट्य हुआ, लोक देवता होने के साथ वैष्णव समुदाय से भी उनका संबंध है।

रामदेव जी की मान्यता राजस्थान, मध्यप्रदेश, गुजरात के साथ-साथ वैश्विक स्तर पर है क्योंकि पोकरण के बाद सबसे बड़ा मेला सिंध स्थित मंदिर में लगता है। उन्होंने बताया कि लोक देवता के इतिहास का पुनर्लेखन और नवीन शिक्षा में उन्हें शामिल करने का प्रयास जारी है। अंजना शर्मा ने लोक कलाओं के लालित्य और इनके जरिए लोक देवताओं की महिमा के बखान पर विस्तृत चर्चा की।

‘हेलो म्हारो सुणजो रुणिचै रा राजा’, ‘लीला पीला थारा नेजा चमके पीर जी’ गीतों ने सभी को भाव विभोर कर दिया।

मॉडरेटर संतोष शर्मा ने लोक देवताओं के थान-छतरियों के संरक्षण, धार्मिक पर्यटन को बढ़ावा देने, नवीन शिक्षा में इन्हें शामिल करने, लोक देवताओं की शिक्षा का अनुसरण करने पर जोर दिया। आसमान से गिरती बूंदों के मधुर संगीत के साथ प्रसिद्ध लोक गायिका सुमित्रा देवी ने लोक गायन की प्रस्तुति दी। यूं लगा की बादलों ने भी बाबा रामदेव को प्रणाम कर अपनी हाजिरी लगाई। सुमित्रा ने गणेश वंदना से प्रस्तुति की शुरुआत की। ‘थानै लेवण आऊंला, बाई तू रोया ना करिये’ गीत में भाई बाबा रामदेव और बहन सुगना बाई के बीच प्रेम को दर्शाया। ‘रो रो कुरलावे बहना, जियड़ो उदास है’ में बाबा रामदेव के प्रति सुगना बाई के भावों का वर्णन किया।

‘हेलो म्हारो सुणजो रुणिचै रा राजा’, ‘लीला पीला थारा नेजा चमके पीर जी’ गीतों ने सभी को भाव विभोर कर दिया। ‘रुणीचे रा धणिया अजमाल जी रा कंवरा’ गीत की प्रस्तुति ने सभी को झूमने पर मजबूर कर दिया।

लीला देवी समूह व राधिका देवी समूह के कलाकारों ने तेरहताली व मंजीरा नृत्य की प्रस्तुति से न केवल बाबा रामदेव की अराधाना की बल्कि राजस्थान की लोक संस्कृति से सभी साक्षात्कार भी करवाया।

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