अकबर से दारा शिकोह तक, कट्टरता के बाद भी मुगल दरबार में सुनाई देती थी हिंदू सनातन धर्म की गूंज!

History: भारत का इतिहास केवल युद्ध और सत्ता संघर्ष की कहानी नहीं है, बल्कि यह सांस्कृतिक संगम का भी गवाह है. मुगलों के शासन को अक्सर इस्लामी परंपराओं तक सीमित समझा जाता है, लेकिन सच यह है कि दरबारों में हिंदू त्योहारों की गूंज भी सुनाई देती थी, संस्कृत ग्रंथों के अनुवाद कराए गए और कुछ धार्मिक संस्थानों को शाही संरक्षण भी मिला.
अकबर के दरबारी उत्सव में शामिल थी दीवाली और होली?
अकबर का शासनकाल धार्मिक-सांस्कृति का सबसे बड़ा प्रतीक माना जाता है. फतेहपुर सीकरी में उसने मक्तब-खाना यानी हाउस ऑफ ट्रांसलेशन की स्थापना की.
यहां संस्कृत ग्रंथों का फारसी में अनुवाद हुआ. महाभारत का रज्मनामा और रामायण इसका सबसे बड़ा उदाहरण हैं. यही नहीं, दरबार और राजधानी में दीवाली और होली जैसे उत्सव भी मनाए जाते थे.
दीवाली को जश्न-ए-चिरागां कहा जाता था, जहां दीपों से महल रोशन होते थे. एक बात अक्सर कही जाती है कि अकबर नवरात्रि में व्यक्तिगत रूप से व्रत रखता था या तुलसी-पूजा में शामिल होता था…ऐसा उल्लेख आइन-ए-अकबरी या अकबरनामा में नहीं मिलता. इसलिए इस दावे की पुष्टि नहीं होती है.
जहांगीर की होली और कृष्ण भक्ति का दावा कितना सच?
जहांगीर के समय दरबारी चित्रकला ने नई ऊंचाइयां पाईं. उसके एलबमों में पक्षियों और पौधों के साथ-साथ कभी-कभी हिंदू देवी-देवताओं और कथाओं को भी दर्शाया गया. उसके दौर में दरबार और शहरों में होली का उत्सव प्रचलित था, जिसे ईद-ए-गुलाबी या आब-ए-पाशी कहा जाता था.
लोकप्रिय धारणा यह है कि जहांगीर कृष्ण-भक्त था, लेकिन उसकी आत्मकथा तुज़ुक-ए-जहांगीरी में ऐसा कोई प्रत्यक्ष, स्पष्ट प्रमाण नहीं मिलता. इसलिए यह दावा बढ़ा-चढ़ा हुआ है.
ताजमहल बनाने वाले शाहजहां ने मंदिरों को संवारा और दान दिया?
शाहजहां को अक्सर केवल ताजमहल का निर्माता समझा जाता है, लेकिन उसके शासनकाल में वृंदावन-मथुरा जैसे क्षेत्रों के कुछ मंदिरों और घाटों को शाही आदेश पर बेहतर और जागीर-पुष्टि मिली.
यह दर्शाता है कि मुगल प्रशासन स्थानीय धार्मिक संस्थानों के साथ व्यवहारिक सह-अस्तित्व रखता था. हालांकि काशी विश्वेश्वर मंदिर को शाहजहां ने बड़ा दान दिया जैसे दावे स्पष्ट और सार्वभौमिक रूप से मान्य दस्तावेजों से पुष्ट नहीं होते हैं.
औरंगजेब सबसे विरोधाभासी छवि!
औरंगजेब का नाम अक्सर मंदिरों के विध्वंस और धार्मिक कट्टरता से जोड़ा जाता है. लेकिन इतिहास एक जटिल तस्वीर प्रस्तुत करता है. कुछ जगहों पर उसके आदेशों से मंदिरों और पुजारियों को अनुदान और संरक्षण मिला, जबकि अन्य अवसरों पर उसने मंदिरों को ध्वस्त भी कराया.
महत्वपूर्ण सुधार यह है कि महाभारत का अनुवाद अकबर के समय हुआ था, और उपनिषदों के अनुवाद दारा शिकोह से जुड़े हैं. औरंगजेब ने ये अनुवाद परियोजनाएं शुरू नहीं कीं.
उल्टा, उसने 1665 में दीवाली पर जुआ और मदिरापान के कारण बंदिशें भी लगाईं. यानी उसका रुख समय और परिस्थितियों के अनुसार बदलता रहा.
दारा शिकोह ने 50 से अधिक उपनिषदों का फारसी अनुवाद किया!
दारा शिकोह मुगलों में सबसे बड़ा आध्यात्मिक सेतु साबित हुआ. उसने सिर्र-ए-अकबर नामक ग्रंथ लिखा, जिसमें 50 से अधिक उपनिषदों का फारसी अनुवाद शामिल है.
इसके अलावा उसने मजमा-उल-बहरैन में हिंदू और इस्लामी दर्शन की समानताओं को दर्शाया. दारा का यह कार्य आज भी भारत की सांस्कृतिक धारा में धार्मिक संवाद का सबसे बड़ा प्रतीक माना जाता है.
मुगल दरबार में संस्कृति और त्योहारों की गूंज
मुगल दरबार केवल फारसी रस्मों तक सीमित नहीं था. वहां दीवाली और होली जैसे हिंदू त्योहार भी मनाए जाते थे. दीवाली के दौरान महल दीपों से सजाए जाते थे, जबकि होली को रंग-बिरंगे जल उत्सव के रूप में स्वीकारा गया.
विदेशी यात्रियों…जैसे फ्रांसिस बर्नियर और निकोलस मैनुची ने अपने संस्मरणों में इसका उल्लेख किया है. यह स्पष्ट करता है कि मुगल दरबार एक सांस्कृतिक चौराहा था, जहां अलग-अलग परंपराएं मिलती थीं.
मुगल काल केवल तलवार और राजनीति की कहानी नहीं…ये आस्था का संगम था?
इतिहास की सच्चाई यह है कि मुगलों के शासनकाल में भारत की सांस्कृतिक परंपराओं का गहरा प्रभाव रहा. अकबर के अनुवाद-आंदोलन और दरबारी उत्सव, जहांगीर की कला में हिंदू विषयों की उपस्थिति, शाहजहां द्वारा मंदिरों को दिया गया संरक्षण, औरंगजेब की विरोधाभासी नीतियां और दारा शिकोह का उपनिषद प्रेम…ये सभी बातें दिखाती हैं कि यह युग केवल तलवार और राजनीति की कहानी नहीं था. यह संस्कृति और आस्था के संगम का भी एक अध्याय था, जिसने भारत को बहुरंगी और सहिष्णु सभ्यता के रूप में आकार दिया.
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