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Indian rupee tumbles past 88 to all-time low on US tariff hit | रुपया रिकॉर्ड ऑल टाइम लो पर…

नई दिल्ली12 मिनट पहले

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भारतीय रुपया शुक्रवार (29 अगस्त) को पहली बार 88 रुपए प्रति डॉलर के ऑल टाइम लो पर आ गया है। एक्सपर्ट्स का कहना है कि भारत पर अमेरिका के टैरिफ की वजह से रुपया में यह गिरावट आई है।

रुपया में आज अमेरिकी डॉलर के मुकाबले करीब 64 पैसे की गिरावट देखने को मिली और ये 88.29 रुपए प्रति डॉलर के अब तक के सबसे निचले स्तर पर आ गया है।

हालांकि, दोपहर 2:10 बजे तक रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया (RBI) ने डॉलर बेचकर रुपए को थोड़ा सहारा दिया और यह करीब 88.12 पर ट्रेड करने लगा।

2025 में अब तक रुपया 3% कमजोर हुआ

इससे पहले फरवरी में रुपया 87.95 प्रति डॉलर के ऑल टाइम लो पर आया था। 2025 में अब तक रुपया 3% कमजोर हो चुका है और यह एशिया की सबसे खराब प्रदर्शन करने वाली करेंसी बन गई है। शुक्रवार को यह चीनी युआन के मुकाबले भी रिकॉर्ड निचले स्तर पर पहुंच गया।

अमेरिका ने भारत पर 50% टैरिफ लगाया

एक्सपर्ट्स का कहना है कि अमेरिका के भारतीय सामानों पर लगाए गए भारी-भरकम टैरिफ भारत की इकोनॉमिक ग्रोथ और फॉरेन ट्रेड को नुकसान पहुंचाएंगे। अमेरिका ने इस हफ्ते भारतीय सामानों पर 25% एडिशनल टैरिफ लगा दिया। जिससे भारत को टोटल 50% टैरिफ का सामना करना पड़ रहा है।

रुपया का अगला अहम स्तर है 89

कोटक सिक्योरिटीज के फॉरेन एक्सचेंज रिसर्च हेड अनिंद्या बनर्जी ने बताया, ‘जब रुपया 87.60 के स्तर पर पहुंचा, तो कई इंपोर्टर्स जिन्होंने अपनी खरीदारी को हेज नहीं किया था, उन्होंने तेजी से डॉलर खरीदना शुरू कर दिया था।

सबको उम्मीद थी कि RBI हस्तक्षेप करेगा, लेकिन ऐसा नहीं हुआ। 88 का स्तर पार होने के बाद स्टॉप लॉस ऑर्डर ट्रिगर होने लगे। अब अगला अहम स्तर 89 है।’

टैरिफ से GDP ग्रोथ 0.8% घट सकती है

इकोनॉमिस्ट का कहना है कि अगर ये टैरिफ एक साल तक लागू रहे, तो भारत की GDP ग्रोथ में 0.6% से 0.8% की कमी आ सकती है। इससे पहले से ही धीमी हो रही इकोनॉमी पर और दबाव पड़ सकता है। RBI ने चालू वित्त वर्ष (31 मार्च तक) के लिए 6.5% ग्रोथ रेट का अनुमान लगाया है।

अमेरिका को एक्सपोर्ट GDP का 2.2%

भारत का अमेरिका को एक्सपोर्ट GDP का 2.2% है। टैरिफ के कारण टेक्सटाइल और ज्वैलरी जैसे श्रम-प्रधान सेक्टरों में मंदी से नौकरियों पर असर पड़ सकता है, जिससे आर्थिक नुकसान और बढ़ेगा।

ये टैरिफ भारत के व्यापार घाटे को और बढ़ा कर सकते हैं। खासकर तब जब विदेशी निवेशकों का रुझान पहले से ही कमजोर है। इस साल अब तक विदेशी निवेशकों ने भारतीय डेट और इक्विटी में 9.7 बिलियन डॉलर यानी 85,630 करोड़ रुपए की बिकवाली की है।

टैरिफ से भारत के ट्रेड बैलेंस पर दबाव

फ्रैंकलिन टेम्पलटन के वाइस प्रेसिडेंट हरि श्यामसुंदर ने कहा, ‘टैरिफ की वजह से एक्सपोर्ट में कमी भारत के ट्रेड बैलेंस पर अतिरिक्त दबाव डाल सकती है।’ कुल मिलाकर अमेरिकी टैरिफ और रुपए की कमजोरी ने भारत की आर्थिक चुनौतियों को और बढ़ा दिया है। अब सबकी नजर इस बात पर है कि RBI और सरकार इस स्थिति से निपटने के लिए क्या कदम उठाते हैं।

इंपोर्ट करना महंगा होगा

रुपए में गिरावट का मतलब है कि भारत के लिए चीजों का इंपोर्ट महंगा होना है। इसके अलावा विदेश में घूमना और पढ़ना भी महंगा हो गया है। मान लीजिए कि जब डॉलर के मुकाबले रुपए की वैल्यू 50 थी तब अमेरिका में भारतीय छात्रों को 50 रुपए में 1 डॉलर मिल जाते थे। अब 1 डॉलर के लिए छात्रों को 88 रुपए खर्च करने पड़ेंगे। इससे फीस से लेकर रहना और खाना और अन्य चीजें महंगी हो जाएंगी।

करेंसी की कीमत कैसे तय होती है?

डॉलर की तुलना में किसी भी अन्य करेंसी की वैल्यू घटे तो उसे मुद्रा का गिरना, टूटना, कमजोर होना कहते हैं। अंग्रेजी में करेंसी डेप्रिशिएशन। हर देश के पास फॉरेन करेंसी रिजर्व होता है, जिससे वह इंटरनेशनल ट्रांजैक्शन करता है। फॉरेन रिजर्व के घटने और बढ़ने का असर करेंसी की कीमत पर दिखता है।

अगर भारत के फॉरेन रिजर्व में डॉलर, अमेरिका के रुपयों के भंडार के बराबर होगा तो रुपए की कीमत स्थिर रहेगी। हमारे पास डॉलर घटे तो रुपया कमजोर होगा, बढ़े तो रुपया मजबूत होगा। इसे फ्लोटिंग रेट सिस्टम कहते हैं।

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