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NARI-2025 Report: इस रिपोर्ट में सामने आए चौंकाने वाले नतीजे! रांची, पटना जैसे कई शहर…


<p style="text-align: justify;">महिला सुरक्षा भारत जैसे देश के लिए केवल एक सामाजिक मुद्दा नहीं बल्कि विकास की दिशा तय करने वाला जरिया है. NARI- 2025 रिपोर्ट इस संदर्भ में एक महत्वपूर्ण पहल है. इसकी मदद से महिलाओं की सुरक्षा से जुड़े वे पहलू उजागर किए हैं. रिपोर्ट में बताया गया कि शहरी क्षेत्रों की 40% महिलाएं अपने ही शहरों में असुरक्षित महसूस करती हैं. खासतौर ये खतरा रात के समय, खराब स्ट्रीट लाइटिंग और अपर्याप्त सुरक्षा व्यवस्थाओं के चलते बढ़ जाते हैं.</p>
<p style="text-align: justify;">NARI- 2025 रिपोर्ट 31 शहरों की 12,770 महिलाओं की राय पर आधारित है और इसलिए इसकी विश्वसनीयता केवल आंकड़ों तक सीमित नहीं है, बल्कि यह महिलाओं के वास्तविक अनुभवों का भी सबूत देती है. रिपोर्ट में शहर देश के अलग-अलग शहरों की महिलाओं से सुरक्षा को लेकर सवाल पूछा गया है, जिसमें चौंकाने वाले नतीजे सामने आए. रिपोर्ट के मुताबिक रांची, श्रीनगर, कोलकाता, दिल्ली, फरीदाबाद, पटना और जयपुर को देश का सबसे कम सुरक्षित शहर &nbsp;माना गया.इसके अलावा कोहिमा, विशाखापत्तनम, भुवनेश्वर, आइज़ोल, गंगटोक, ईटानगर और मुंबई सबसे सुरक्षित शहरों की श्रेणी में रखा गया.</p>
<p style="text-align: justify;"><strong>महिलाओं के साथ होने वाली उत्पीड़न&nbsp;</strong><br />सड़क पर घूरना, छेड़खानी, अश्लील टिप्पणियां और शारीरिक छेड़छाड़ जैसी घटनाएं आम हैं. इसके कारण कई छात्राएं पढ़ाई बीच में छोड़ देती हैं और कामकाजी महिलाएं नौकरी छोड़ने को मजबूर हो जाती हैं. रिपोर्ट की माने तो &nbsp;2024 में 7% महिलाओं ने कहा कि उन्हें उत्पीड़न झेलना पड़ा. वहीं सुरक्षा के लिहाज से सबसे अधिक जोखिम 18-24 वर्ष की युवतियों को उठाना पड़ा है. हालांकि, अगर NCRB 2022 की रिपोर्ट से तुलना किया जाए तो में केवल 0.07% महिला के साथ होने वाले अपराधि मामलों को दर्ज किया गया. यह अंतर दिखाता है कि आधिकारिक आंकड़े महिलाओं की असल पीड़ा को दर्ज ही नहीं कर पाते.</p>
<p style="text-align: justify;"><strong>रिपोर्ट में उजागर किए गए बड़े कारण</strong><br />महिलाओं की असुरक्षा का कारण केवल अपराध नहीं है बल्कि कई संरचनात्मक खामियाX भी हैं, जो इस प्रकार है:</p>
<ul>
<li style="text-align: justify;">अपर्याप्त बुनियादी ढांचा.</li>
<li style="text-align: justify;">खराब रोशनी और सीसीटीवी की कमी.</li>
<li style="text-align: justify;">असुरक्षित और अकुशल पब्लिक ट्रांसपोर्ट.</li>
<li style="text-align: justify;">सामाजिक दृष्टिकोण, जिसमें अक्सर पीड़िता को ही दोषी ठहराया जाता है.</li>
</ul>
<p style="text-align: justify;">इसके अलावा, केवल 22% महिलाएं अपने उत्पीड़न के अनुभवों की रिपोर्ट दर्ज कराती हैं और उनमें से भी केवल 16% मामलों में कार्रवाई होती है. इससे यह स्पष्ट है कि रिपोर्टिंग सिस्टम पर भरोसा करना बड़ी गलती है.</p>
<p style="text-align: justify;"><strong>नीति और सुधार की दिशा</strong><br />रिपोर्ट ने यह भी दिखाया कि 53% महिलाओं को यह तक नहीं पता कि उनके कार्यस्थल पर पीओएसएच (POSH) नीति है या नहीं. इसका सीधा असर महिलाओं की मानसिक और पेशेवर सुरक्षा पर पड़ता है. राष्ट्रीय महिला आयोग की अध्यक्ष विजया किशोर राहतकर ने कहा कि इस रिपोर्ट का उद्देश्य केवल आंकड़े पेश करना नहीं बल्कि महिलाओं की वास्तविक आवाज को सामने लाना है. वहीं, पीवैल्यू एनालिटिक्स के एमडी प्रह्लाद राउत ने इसे विकसित भारत 2047 के विजन से जोड़ते हुए नीति-निर्माताओं, कॉर्पोरेट्स और नागरिक समाज को मिलकर ठोस कदम उठाने की अपील की.</p>
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