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7 flaws in police investigation, accused acquitted in constable suicide case | पुलिस…

राजस्थान हाईकोर्ट ने आरएसी प्रथम बटालियन की महिला कांस्टेबल गीतादेवी की खुद पर पेट्रोल उड़ेलकर सुसाइड के मामले में फैसला सुनाते हुए आरोपी पति हरिभजन राम को बरी कर दिया है। जस्टिस संदीप शाह की कोर्ट ने अपने फैसले में कहा कि केस में पुलिस इन्वेस्टिगेशन

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मामला 7 सितंबर 2018 की रात का है। जिसमें, लगभग 10 बजे जोधपुर के मंडोर पुलिस थाने में दर्ज एफआईआर के अनुसार मंडोर स्थित RAC प्रथम बटालियन में कांस्टेबल के रूप में कार्यरत गीतादेवी ने अपने बयान में कहा था कि उसका पति हरिभजन राम उसे मानसिक रूप से प्रताड़ित करता था और लगभग दस साल से उसे छोड़ चुका था। 5 सितंबर को जब वह कोर्ट गई थी, तो उसके पति ने उसका अपमान किया और गालियां दीं। इसी मानसिक तनाव के कारण उसने 7 सितंबर को खुद पर पेट्रोल डालकर आग लगा ली थी। घटना के 14 दिन बाद 20 सितंबर 2018 को गीतादेवी हॉस्पिटल में उपचार के दौरान मौत हो गई थी।

पारिवार के सदस्यों ने कहा- असहज सवालों से परेशान थीं

मृतका के भाई दिनेश, पिता मोहन राम, मां मोहनी देवी और बेटे जयप्रकाश के बयानों में भी यही कहा गया था कि 5 सितंबर को कोर्ट में हरिभजन राम के वकील ने गीतादेवी से असहज सवाल पूछे थे, जिससे वह मानसिक रूप से परेशान हो गई थी। सभी ने यह स्वीकार किया था कि हरिभजन राम और गीता देवी 2006-2007 से अलग रह रहे थे।

कोर्ट ने अपने फैसले में पाई ये 7 खामियां

कोर्ट ने अपने फैसले में यह निष्कर्ष निकाला कि खराब इन्वेस्टिगेशन के साथ ट्रायल चलाना “न्याय प्रक्रिया का दुरुपयोग” होगा और आरोपी के साथ “गंभीर अन्याय” होगा। इसमें मुख्य रूप से 7 खामियों का उल्लेख किया गया –

1. इन्वेस्टिगेशन ऑफिसर में बदलाव: शुरुआत में पुलिस ने केवल धारा 498A के तहत केस बनाया था। लेकिन 26 जनवरी 2019 को पुलिस कमिश्नर के निर्देश पर इन्वेस्टिगेशन ऑफिसर को बदल दिया गया। नए ऑफिसर ने धारा 306 (आत्महत्या के लिए दुष्प्रेरणा) भी जोड़ी।

2. कानूनी तत्वों की समझ की कमी: कोर्ट ने पैरा 25 में स्पष्ट रूप से कहा कि पुलिस यह दिखाने में असफल रही कि आरोपी ने मृतका को आत्महत्या के लिए उकसाने का कोई स्पष्ट कार्य किया था। पुलिस ने दुष्प्रेरणा के आवश्यक तत्वों को साबित करने के लिए पर्याप्त सबूत एकत्र नहीं किए।

3. विरोधाभासी गवाहों के बयान की अनदेखी: पुलिस ने मृतका के वकील पवन रांकावत के अहम बयान को सही तरीके से नहीं लिया। जिसमें रांकावत ने स्पष्ट कहा था कि ‘कोर्ट की तारीख पर आरोपी और मृतका के बीच कोई बातचीत नहीं हुई थी। कोई धमकी नहीं दी गई थी। गीता देवी ने कभी उन्हें प्रताड़ना या दबाव के बारे में नहीं बताया था।

4. टाइमलाइन और तथ्यों की जांच में कमी: पुलिस ने यह तथ्य सही तरीके से वेरिफाई नहीं किया कि हरिभजन राम और गीता देवी 2006 से अलग रह रहे थे और उनका कोई सीधा संपर्क नहीं था।

5. ‘Miserably failed’: कोर्ट ने पैरा 25 में कहा कि अभियोजन पक्ष यह साबित करने में बुरी तरह असफल रहा कि आरोपी ने आत्महत्या के लिए कोई दुष्प्रेरणा दी थी।

6. सही कानूनी एनालिसिस की कमी: पुलिस ने यह समझने में विफलता दिखाई कि केवल: दूसरी शादी करना, अलग रहना, कोर्ट में सामान्य विवाद जैसी ये सभी बातें धारा 306 (आत्महत्या के लिए दुष्प्रेरणा) के तत्वों को पूरा नहीं करतीं।

7. स्वतंत्र गवाह के बयान की अनदेखी: पुलिस ने पड़ोसी सुलोचना और भरत सोढा के बयानों को सही तरीके से एनालाइज नहीं किया, जिन्होंने बताया था कि गीतादेवी मनफूल के साथ रहती थी, हरिभजन राम के साथ नहीं।

जस्टिस संदीप शाह ने अपने फैसले में धारा 306 और 107 IPC के प्रावधानों का विस्तृत विश्लेषण करते हुए कहा कि आत्महत्या के लिए दुष्प्रेरणा सिद्ध करने के लिए यह दिखाना जरूरी है कि आरोपी ने मृतक को आत्महत्या के लिए उकसाया हो या जानबूझकर ऐसा कोई कार्य किया हो जिससे आत्महत्या को बढ़ावा मिला हो।

कोर्ट ने सुप्रीम कोर्ट के महेंद्र आवासे बनाम मध्य प्रदेश राज्य, अय्यूब बनाम उत्तर प्रदेश राज्य और मंगल सिंह बनाम राजस्थान राज्य के फैसलों का हवाला देते हुए स्पष्ट किया कि गुस्से में कहे गए शब्द या सामान्य झगड़े के दौरान बोले गए वाक्य आत्महत्या के लिए दुष्प्रेरणा नहीं माने जा सकते।

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