राष्ट्रीय

‘अहंकारी मत बनो, हाईकोर्ट को माता-पिता की तरह होना चाहिए’, महिला जज की याचिका पर सुनवाई करते…

सुप्रीम कोर्ट ने एक मामले की सुनवाई करते हुए कहा कि हाईकोर्ट्स को अपने न्यायिक अधिकारियों के लिए माता-पिता की तरह काम करना चाहिए. सुप्रीम कोर्ट ने यह टिप्पणी एक महिला जज की याचिका पर सुनवाई के दौरान की है, जिसमें उन्होंने बेटे की शिक्षा का हवाला देते हुए ट्रांसफर की मांग की है.

बार एंड बेंच की रिपोर्ट के अनुसार कोर्ट ने कहा कि जज की ओर से ट्रांसफर को लेकर दाखिल याचिका सुविधा का मामला नहीं है, बल्कि उनके बेटे की शिक्षा की जरूरत से जुड़ा है. कोर्ट ने झारखंड हाईकोर्ट से यह भी कहा कि अहंकारी रवैया अपनाने के बजाए महिला जज की तबादले की याचिका को शालीनता के साथ देखना चाहिए.

मुख्य न्यायाधीश भूषण रामकृष्ण गवई और जस्टिस के विनोद चंद्रन की बेंच ने अनुसूचित जाति वर्ग से संबंधित एक अतिरिक्त जिला न्यायाधीश (ADJ) की याचिका पर संज्ञान लेते हुए कहा, ‘हाईकोर्ट्स को अपने न्यायिक अधिकारियों की समस्याओं के प्रति सजग रहना होगा.’

कोर्ट को बताया गया कि याचिकाकर्ता एक सिंगल मदर हैं और उन्होंने ऐसे जिले में अपना तबादला करने की मांग की है, जहां पर स्कूल की अच्छी सुविधा हो ताकि वह अपना ज्यूडिशियल वर्क भी जारी रख सकें और बेटे को भी मदद कर सकें. उनके बेटे की अगले साल 12वीं की बोर्ड परीक्षा है.

महिला जज ने छह महीने के बाल देखभाल अवकाश के अनुरोध को अस्वीकार किए जाने को चुनौती देते हुए सुप्रीम कोर्ट का रुख किया था. बाद में उनका तबादला दुमका कर दिया गया. उन्होंने हाईकोर्ट में एक अभ्यावेदन प्रस्तुत किया जिसमें हजारीबाग में सेवा जारी रखने या रांची या बोकारो स्थानांतरित किए जाने की मांग की गई है. उन्होंने दावा किया कि दुमका में अच्छे सीबीएसई स्कूल नहीं हैं.

मुख्य न्यायाधीश बी आर गवई ने कहा, ‘हाईकोर्ट को अपने न्यायिक अधिकारियों के माता-पिता की तरह कार्य करना चाहिए और ऐसे मुद्दों को अहंकार का मुद्दा नहीं बनाना चाहिए.’ सुप्रीम कोर्ट ने कहा, ‘अब आप या तो उन्हें बोकारो स्थानांतरित करें या उसे मार्च/अप्रैल, 2026 तक हजारीबाग में ही रहने दें… मेरा मतलब है कि परीक्षाएं समाप्त होने तक.’ हाईकोर्ट को निर्देशों का पालन करने के लिए दो हफ्ते का समय दिया गया था.

मई में, सुप्रीम कोर्ट ने झारखंड सरकार और हाईकोर्ट रजिस्ट्री से न्यायिक अधिकारी की याचिका पर जवाब मांगा था, जिसमें उनके बाल देखभाल अवकाश के अनुरोध को अस्वीकार करने को चुनौती दी गई थी. महिला न्यायिक अधिकारी ने जून से दिसंबर तक छह महीने की छुट्टी मांगी थी.

सुप्रीम कोर्ट ने झारखंड हाईकोर्ट से कहा कि वह सिंगल पेरेंट महिला न्यायिक अधिकारी को हजारीबाग में ही रहने दें या उनके बेटे की 12वीं कक्षा की परीक्षाओं को ध्यान में रखते हुए बोकारो स्थानांतरित कर दें. न्यायिक अधिकारियों पर लागू बाल देखभाल अवकाश नियमों के अनुसार, एडीजे अपने कार्यकाल के दौरान 730 दिन तक की छुट्टी की हकदार हैं. बाद में, उन्हें तीन महीने की छुट्टी दे दी गई.

Related Articles

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Back to top button